मानव जीवन में कर्म की महत्ता सर्वविदित है। बिना कर्म किये मानव एक क्षण भी नहीं रह सकता है। कुछ न कुछ कर्म करेगा ही और वे कर्म दो प्रकार के होंगे- एक पुण्यजनक तथा दूसरा पापजनक , इस स्थित में कर्म पर विचार करना अनिवार्य हो जाता है। हमारे श्रीवैष्णव संप्रदाय में कर्मनिष्ठा से युक्त होकर शास्त्रोचित कर्म करते हुए भगवतकृपा को ही कल्याण का साधन स्वीकार किया गया है। इसलिए सभी श्रीवैष्णव को संप्रदाय परंपरानुकूल आचरण संपन्न होना चाहिए।
आचारहीन प्राणी लोक पर लोक दोनों जगह विनष्ट होता है उसे कहीं सुख नहीं मिलता अतः श्रीवैष्णवों के लिए सुविधापूर्वक अपने नित्य कर्म का पालन कर सकें इस हेतु यह " नित्यानुसन्धान " पुस्तक प्रकाशित हो रही है। सभी श्रीवैष्णवों से आशा है की अपनी नित्य दिनचर्या में इसे समाहित करेंगे तो वैष्णवता का उत्कर्ष होगा और मानव जीवन मंगलमय होगा।