भूमिका : श्री जयरामदासजी महाराज ने श्रीधाममठ की जमीन १९८० में खरीद
कर मठ बनाया।यह कार्य भक्तों के सहकार से संभव हो सका। इस
मंदिर मे श्री राम, लक्ष्मण एवं सीता की मूर्तियां विराजमान हैं ,जिन्हें
महाराज ने मठ की संपूर्ण संपत्ति समर्पित कर स्वयं सर्वराहकर के रूप
में कार्यरत रहे। अयोध्या की परंपरा के अनुसार सर्वराहकर मंदिर का
प्रमुख कार्यकर्ता एवं संरक्षक होता है,जिसे मंदिर की संपत्ति को बेचने
का अधिकार नहीं होता । भविष्य में नये सर्वराहकर की नियुक्ति
समयानुसार वह कर सकता है। सन १९९९ में स्वामी राघवाचार्यजी को
सुयोग्य सर्वराहकर समझकर उनकी इस पद पर नियुक्ति हुई।
उद्देश्य : श्रीधाममठ का मुख्य उद्देश्य यहाँ स्थापित श्रीमूर्तियों की सेवा
एवं आराधना है।साथ ही मंदिर संलग्न अन्नक्षेत्र द्वारा अयोध्या
में पधारनेवाले भक्तों को शुद्ध और पवित्र भोजन रहने की
सुविधा प्राप्त हो सके। इसी मठ के अंतर्गत सन् -२००३ से श्री
नंदनी गोशाला तथा सन् २०११ से श्री रामानुज वेदविदयालय
कार्यरत हैं।
भावी योजनाएं : श्रीधाममठ श्री रामजन्मभूमि एवं श्री हनुमानगढी के अत्यंत
निकट है।अयोध्या हिन्दू धर्म की आस्था का नया केन्द्र बनने
जा रहा है। यहां भक्तों का आवागमन बढऩे जा रहा है।इस
उद्देश्य से भक्तगणों के सहकार्य से प्रतिदिन १०० – १५०
व्यक्तियोँ के भोजन की व्यवस्था करना आवश्यक है।वर्तमान में
यह खर्च ५००००/ मासिक है।
श्री नंदनी गोशाला में अभी ३२ गायें हैं। यह संख्या शीघ्र ही
५० हो जायेगी । एक गाय का वार्षिक खर्च २१००० / रुपये होता
है।गोशाला के विस्तारीकरण में भी अधिक अर्थव्यवस्था आवश्यक
है।
श्री रामानुज वेदविदयालय में वर्तमान में १७ बटुक अध्ययनरत
हैं। उनका आवास, भोजन, वस्त्र एवं शिक्षा नि:शुल्क है। एक
विद्यार्थी का वार्षिक खर्च २५०० रु. आता है।
उपरोक्त सभी योजनाओं में भक्त आर्थिक सहयोग देकर पुण्य
प्राप्त कर सकते हैं। दानराशि आयकर मुक्त है ( CIT Exemption, Lucknow/80G/
2018- 19/10207 )
कोई भी भक्त , भारत अथवा भारत के बाहर स्थायी रहते हुए
भी अपनी आर्थिक सेवा प्रदान कर सकता है। सेवा देनेवाले भक्त
को दानराशि की रसीद, फोटो और व्हिडिओ द्वारा समस्त
जानकारी दी जायेगी।