• संपर्क करें
  • +९१ ९६१६ ७०३ २०९
  • पता
  • रामलला सदन मंदिर, अयोध्या
  • ईमेल
  • info@ramlalasadan.com

प्रकाशन



पंडितश्रीकमलकांतत्रिपाठीविरचित: स्त्रीसंन्यासाधिकारविचार

धर्म के अस्तित्व में मुख्यरूप से वेद ही प्रमाण है। इनसे अतिरिक्त जितने भी वेदसंपर्क से शून्य मार्ग है वे धर्म और अधर्म केविषय में प्रमाण नहीं है। आज लोक तंत्र में लोग नारियों के समानाधिकार को लेकर संघर्ष करते दिखायी देते है। उनके उस उपक्रम से समाज में ऐसा संदेश जाता है की धर्मशास्त्र में उन्हें धर्म से वंचित कर दिया है। यह मिथ्या प्रचार वेद की छवि को धूमिल करने के लिये है। शास्त्रों ने नारियों को जो सम्मान प्रदान किया है वह लोकतंत्र में चुने गये सभ्यों के उपक्रम से प्राप्त नहीं हो सकता। वेद और तन्मुलक शास्त्रों ने धर्म के विषय में नारियों को समानाधिकार प्रदान किया है। मीमांसा के छठे अध्याय में स्त्री पुरुष दोनों का सहाधिकार नगाधिराज हिमालय की तरह अचल रूप से स्थापित है। उससे अधिक अधिकार का आकलन आज के नेता नहीं कर सकते। प्रस्तुत ग्रंथ पंडित श्रीकमलाकांतत्रिपाठीजी ने संस्कृत में लिखा है जिसको अपनी सरल सुबोध भाषाव्याख्या से पूर्णता प्रदान करने का कार्य जगद्गुरु रामानुजाचार्य श्रीराघवाचार्यजी महाराज ने की है। निबंधग्रंथो की परंपरा में नारिधर्म के विषय में सांडोगपङग मींमासा करनेवाला यह अपने ढंग का प्रथम ग्रंथ है। इस ग्रंथ के अनुशीलन से नारियों के विषय में फैलायी जाने वाली भ्रांत धारणाओं का निरास होगा और वास्तविक परिशुद्ध धर्म का प्रकाश होगा सभी जिज्ञासुजनों के लिए यह अत्यंत उपयोगी ग्रंथ है जो वेद्शास्त्राविरोधी तर्क की कसौटी पर खरा उतरता है।