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श्रीमद्भगवदरामानुजाचार्यप्रणीत : वेदार्थसंग्रह

श्रीमद रामानुजाचार्यप्रणीत ग्रंथो में वेदार्थसंग्रह अन्यतम ग्रंथ है। आचार्यजी ने एक दिन वेडक़टाचल पर वेदवाक्यों का श्रुतियों-स्मृतियों-पुराणों- तथा इतिहासों से मर्यादित अर्थ का निर्णय करते हुए प्रवचन किया था,वह प्रवचन ही वेदार्थसंग्रह के नाम से प्रख्यात है।

इस ग्रंथ में रामानुजाचार्य श्रुतियों का शास्त्रमरयादित अर्थ करते हुए सर्वप्रथम शाडकरमत की विस्तार से समालोचना करके अपने सिद्धांत का समर्थ-समर्थन किये है। उसके पश्चात उन्होंने व्दैताव्दैतवादी भास्कराचार्य एवं यादवप्रकाशाचार्य के मतों की समालोचना की है। तदनंतर उन्होंने मीमांसकों के अभिमत कर्म के स्वरुपविषयक अनेक मान्यताओं की भी समालोचना की है जो सभी वेदांतियों को अभीष्ट है।

ग्रंथ के अंतिम भाग में जगत एवं ब्रम्ह में शरीरात्मभाव सबंध का वेदाभिमत प्रतिपादन कर के जीवों के त्रेविध्य, मुक्तिप्राप्ति के साधन तथा श्रीभगवान के स्वरुप का विशद वर्णन,पुराणों के सात्विकादि विभाग,नित्यसूरियों की प्रामाणिकता एवं परम पुरुषार्थ के यथार्थ स्वरुप का निरूपण किया गया है।